तत्त्वबोध या तत्त्व ज्ञान के सूत्र

              तत्त्व-बोध/ तत्त्वज्ञान के सूत्र
                               तत्त्ववेत्ता पुरुष स्व-निर्मित या पूर्व निर्धारित किसी शब्द विशेष को भलीभांति अन्वय-विच्छेद कर, उस शब्द का समीक्षा कर, उस शब्द का अर्थ, भाव, अभिप्राय आदि को देश, काल, अवस्था एवं प्रयोजन के अनुरूप/अनुकूल बनाकर तथा बाह्य शब्द का आवरण का भेदन कर आत्मतत्त्व का बोध कराते हैं| तत्पश्चात्त् उस का अभिप्राय, भाव, एवं वाणी युक्त शब्द पुनः निष्प्राण होकर सद्ग्रंथो में विद्दमान हो जाते हैं| उस निष्प्राण (निरर्थक) वाक्य को ब्रह्म-वाक्य के रूप में जानते हैं| कालान्तर में उस वाक्य का बिभिन्न प्रकार से अर्थ करते हुवे बिद्वत्त्जन क्लेश को प्राप्त होते रहते हैं|

                  सद्ग्रंथों में प्रयुक्त ब्रह्म-वाक्य इस प्रकार हैं| 01) अहं ब्रह्मास्मि, 02) तत्त्वमसि, 03) प्रज्ञानं ब्रह्म, 05) आत्मतत्त्वम्, 06) सर्वं खल्विदं ब्रह्म, 07) सोऽहं, 08) ॐ तत्त्सत् 09) हंĶसो 10) अलिफ़-लाम्-मीम, 11) अलिफ़-लाम्-सीन, 12) अलिफ़-लाम्-क़ाफ़, 13) अलिफ़-लाम्-साद, 14) अलिफ़-लाम्-ऐन, आदि - आदि| तत्त्व बोध को प्राप्त हुवे लोगों के लिए ब्रह्म-वाक्य के द्वारा तत्त्वबोध को प्राप्त हो जाने बाद ब्रह्म-वाक्य सहित वो सारे अर्थपूर्ण शब्द कार्य-कारण सहित अपने आप में लींन हो जाने के कारण समय के साथ-साथ सारे शब्दादि निष्प्राण हो जाते हैं| यहाँ निचे एक ब्रह्म-वाक्य आत्मतत्त्वम् को अन्वय-विच्छेद कर के बताया जा रहा है| किन्तु इस शब्द में भी  शब्दार्थ, भावार्थ, लक्षणार्थ, वाणी, प्रयोजन आदि का अभाव होने के कारण यह तत्त्वबोध को प्राप्त व्यक्ति के लिए मात्र सांकेतिक है|

















 नोट :-
           उपरोक्त सभी ब्रह्म वाक्यों में (अलग-अलग) तीन शब्द (हर्फ़) है| जिसे किसी      समझे हुवे ब्यक्ति द्वारा पढ़ कर समझने की अपेक्षा सुन कर समझना आसान होगा|

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