तत्त्व-बोध/ तत्त्वज्ञान के सूत्र तत्त्ववेत्ता पुरुष स्व-निर्मित या पूर्व निर्धारित किसी शब्द विशेष को भलीभांति अन्वय-विच्छेद कर, उस शब्द का समीक्षा कर, उस शब्द का अर्थ, भाव, अभिप्राय आदि को देश, काल, अवस्था एवं प्रयोजन के अनुरूप/अनुकूल बनाकर तथा बाह्य शब्द का आवरण का भेदन कर आत्मतत्त्व का बोध कराते हैं| तत्पश्चात्त् उस का अभिप्राय, भाव, एवं वाणी युक्त शब्द पुनः निष्प्राण होकर सद्ग्रंथो में विद्दमान हो जाते हैं| उस निष्प्राण (निरर्थक) वाक्य को ब्रह्म-वाक्य के रूप में जानते हैं| कालान्तर में उस वाक्य का बिभिन्न प्रकार से अर्थ करते हुवे बिद्वत्त्जन क्लेश को प्राप्त होते रहते हैं| सद्ग्रंथों में प्रयुक्त ब्रह्म-वाक्य इस प्रकार हैं| 01) अहं ब्रह्मास्मि, 02) तत्त्वमसि, 03) प्रज्ञानं ब्रह्म, 05) आत्मतत्त्वम्, 06)...